नई दिल्ली। हरियाणा की भाजपा-जेजेपी सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार वीरवार को होने जा रहा है। इसे लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर चौतरफा दबाव है। अपनी सहयोगी पार्टी जजपा के कितने सदस्यों को मंत्री पद देना है, निर्दलीयों को कहां और कैसे एडजस्ट करना है और भाजपा के किन धुरंधरों को सत्ता की कुर्सी दी जाए, इन सब सवालों के चक्कर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर 'आगे कुआं पीछे खाई' के फेर में फंसे नजर आ रहे हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार में यदि जजपा को अहम विभाग दिए जाते हैं तो वह लंबे वक्त में भाजपा सरकार के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होंगे। दूसरी ओर, निर्दलीयों को सिर पर बैठाया जाता है तो वह भी देर सवेर खट्टर सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं। यही वजह है कि भाजपा-जेजेपी सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार मुख्यमंत्री खट्टर के लिए 'आगे कुआं पीछे खाई' साबित होता दिख रहा है।
दिल्ली के भाजपा नेताओं का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में लगभग सात-आठ मंत्री भाजपा के कोटे से, दो जजपा से और किसी एक निर्दलीय को सत्ता सुख का लाभ मिल सकता है। यह भी संभावना है कि पहले मंत्रिमंडल विस्तार में किसी भी निर्दलीय को मंत्री पद न मिले। उन्हें दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार में जगह मिल सकती है या जल्द ही चेयरमैन पद देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया जाएगा।
पहले मंत्रिमंडल विस्तार में कुछ इस तरह का समीकरण रहेगा
हरियाणा में 90 सदस्यीय विधानसभा है। इसमें मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री को मिलाकर कुल 14 मंत्री बनाए जा सकते हैं। मनोहर लाल सीएम तो दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बन चुके हैं। अब नई कैबिनेट में 12 मंत्री बनाए जाने की गुंजाइश है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती निर्दलीय विधायकों को एडजेस्ट करने की है। बुधवार को प्रदेश के पांच निर्दलीय विधायक दिल्ली दरबार में घूमकर मंत्री पद लेने की जुगत भिड़ाते रहे। भाजपा के 40 विधायक हैं। उन्हें जजपा के दस विधायकों का समर्थन हासिल है, जबकि छह सात निर्दलीय विधायक भी भाजपा सरकार को समर्थन देने की बात कह चुके हैं।
जजपा नेता और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के साथ भाजपा की बात हो चुकी है। जजपा को डिप्टी सीएम सहित तीन मंत्री पद मिलने हैं। एक पद मिल चुका है, दो बाकी हैं। मंत्रिमंडल विस्तार में जजपा के कोटे से दो मंत्री बनाए जाएंगे। भाजपा के सात-आठ विधायकों को मंत्री पद मिलना तय है। रही बात निर्दलीयों की तो इसे लेकर मुख्यमंत्री सबसे ज्यादा परेशान हैं। अधिकांश निर्दलीय विधायक तो ऐसे हैं जो पहले भाजपा में ही थे।
जब टिकट नहीं मिला तो वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में कूद गए और जीत भी दर्ज करा दी। खास बात है कि इन निर्दलीय विधायकों ने उस वक्त भाजपा को समर्थन देने की बात कही थी, जब भाजपा और जजपा के बीच समझौते की बात चल रही थी। गोपाल कांडा पांच विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंच गए थे। उसी वक्त मीडिया ने उनके पुराने मामलों को उठा दिया तो भाजपा और कांडा को भी कदम पीछे खींचना पड़ा।